Class 10 science Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes in hindi Chapter = 3 धातु एवं अधातु वर्तमान में 118 तत्व ज्ञात हैं । इनमें 90 से अधिक धातुऐं , 22 अधातुऐं और कुछ उपधातु हैं । धातु :- पदार्थ जो कठोर , चमकीले , आघातवर्ध्य , तन्य , ध्वानिक और ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक होते हैं , धातु कहलाते हैं । जैसे :- सोडियम ( Na ) , पोटाशियम ( K ) , मैग्नीशियम ( Mg ) , लोहा ( Fc ) , एलूमिनियम ( AI ) , कैल्शियम ( Ca ) , बेरियम ( Ba ) धातुऐं हैं । धातुओं के उपयोग :- धातुओं का उपयोग इमारत , पुल , रेल पटरी को बनाने में , हवाईजहाज , समुद्री जहाज , गाड़ियों के निर्माण में , घर में उपयोग होने वाले बर्तन , आभूषण , मशीन के पुर्जे आदि के निर्माण में किया जाता है । अधातु :- जो पदार्थ नरम , मलिन , भंगुर , ऊष्मा तथा विद्युत के कुचालक होते हैं , एवं जो ध्वानिक नहीं होते हैं अधातु कहलाते हैं । जैसे :- ऑक्सजीन ( O ) , हाइड्रोजन ( H ) , नाइट्रोजन ( N ) , सल्फर ( S ) , फास्फोरस ( P ) , फ्लूओरीन ( F ) , क्लोरीन ( CI ) , ब्रोमीन ( Br ) , आयोडिन ( I ) , अधातुऐं हैं । अधातुओं के उपयोग :- ऑक्सीजन हमा
Chapter 1. ईटें, मनके तथा अस्थियाँ
हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं
संस्कति शब्द का अर्थ :- पुरातत्वविद " संस्कृति " शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और सामान्यता एक साथ , एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल -खंड से संबंध पाए जाते हैं |
हड़प्पा सभ्यता का नामकरण :- हड़प्पा नामक स्थान जहाँ पर यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी उसी के नाम पर किया गया हैं | इसका काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया हैं |
हड़प्पा संस्कृति काल :- 2600 से 1900 ईसा पूर्व
हड़प्पा संस्कृति के भाग /चरण :-
1 . आरम्भिक हड़प्पा संस्कृति
2. विकसित हड़प्पा संस्कृति
3. परवर्ती हड़प्पा संस्कृति
B.C (Before Christ) - ईसा पूर्व
A.D (Anno Domini) - ईसा मसीह के जन्म वर्ष
B.P (Before Present) - आज से पहले
सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु :- मुहर या सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई जाती थी |
हड़प्पा संस्कृति के खुदाई स्थल से मिले भोजन अवशेष :-
1. अनाज - गेहूँ ,जौ ,दाल ,सफ़ेद चना तथा तिल और बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए हैं |
2. जानवरो की हड्डियाँ - भेड़ , बकरी , भैंस, सुअर और वृषभ (बैल) आदि का प्रयोग कृषि कार्यो के लिए किया जाता था |
3. मछलियाँ और पक्षी के अवशेष मिले हैं |
हड़प्पा संस्कृति के पुरातात्विक साक्ष्य :-
या
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के प्रमुख स्रोत :
हड़प्पाई संस्कृति के प्रमुख क्षेत्र :- 1. अफगानिस्तान
2. जम्मू
3. ब्लूचिस्तान (पाकिस्तान)
4. गुजरात
5. राजस्थान
6. पश्चिमी उत्तर प्रदेश
कृषि के अवशेष :-
1. चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) मिटटी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं |
2. इसके अतिरिक्त पुरातत्विदों को कालीबंगन (राजस्थान) नामक स्थान पर जुतें हुए खेत का साक्ष्य मिला है जो आरंभिक हड़प्पा स्तरों से सम्बन्ध हैं |
3. अफगानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं |
4. धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवत कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था |
भारतीय पुरातत्व का जनक :- जनरल अलेक्जेंडर कर्निघम
सर अलेक्ज़ैंडर कनिंघम (Sir Alexander Cunningham :- 23 जनवरी, 1814 -28 नवंबर, 1893) ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर थे जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनको भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का जनक माना जाता है। इनके दोनों भ्राता फ्रैन्सिस कनिंघम एवं जोसफ कनिंघम भी अपने योगदानों के लिए ब्रिटिश भारत में प्रसिद्ध हुए थे। भारत में अंग्रेजी सेना में कई उच्च पदों पर रहे और 1861 ई. में मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्हें इनके योगदानों के लिए 20 मई, 1870 को ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में 1878 में इन्हें ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर से भी सम्मानित किया गया। 1887 में इन्हें नाइट कमांडर ऑफ इंडियन एंपायर घोषित किया गया।
अफगानिस्तान में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहर :-
1. शोर्तुघई - यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले हे |
2. मुंदिगाक
भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहर :-
1. गुजरात में लोथल ,रंगपुर ,सुरकोटदा ,मालवड ,रोजदी ,देसलपुर ,धौलावीरा ,भगतराव ,प्रभाषपाटन
2. हरियाणा में राखीगढ़ी , बनावली, मीताथल , कुणाल |
3. पंजाब में रोपड़ (पंजाब), बाड़ा संघोंल (जिला फतेहगढ़ ,पंजाब )|
4. महाराष्ट्र में दायमाबाद धौलपुर , रावण उर्फ़ बड़ागांव , अम्बखेड़ी ,हुलास |
5. जम्मू कश्मीर में मांदा
6. राजस्थान में कालीबंगन तरखनवाला डेरा |
हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी :-
हड़प्पाई संस्कृति के प्रमुख क्षेत्र :- 1. अफगानिस्तान
2. जम्मू
3. ब्लूचिस्तान (पाकिस्तान)
4. गुजरात
5. राजस्थान
6. पश्चिमी उत्तर प्रदेश
कृषि के अवशेष :-
1. चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) मिटटी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं |
2. इसके अतिरिक्त पुरातत्विदों को कालीबंगन (राजस्थान) नामक स्थान पर जुतें हुए खेत का साक्ष्य मिला है जो आरंभिक हड़प्पा स्तरों से सम्बन्ध हैं |
3. अफगानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं |
4. धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवत कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था |
भारतीय पुरातत्व का जनक :- जनरल अलेक्जेंडर कर्निघम
सर अलेक्ज़ैंडर कनिंघम (Sir Alexander Cunningham :- 23 जनवरी, 1814 -28 नवंबर, 1893) ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर थे जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनको भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का जनक माना जाता है। इनके दोनों भ्राता फ्रैन्सिस कनिंघम एवं जोसफ कनिंघम भी अपने योगदानों के लिए ब्रिटिश भारत में प्रसिद्ध हुए थे। भारत में अंग्रेजी सेना में कई उच्च पदों पर रहे और 1861 ई. में मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्हें इनके योगदानों के लिए 20 मई, 1870 को ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में 1878 में इन्हें ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर से भी सम्मानित किया गया। 1887 में इन्हें नाइट कमांडर ऑफ इंडियन एंपायर घोषित किया गया।
अफगानिस्तान में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहर :-
1. शोर्तुघई - यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले हे |
2. मुंदिगाक
भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहर :-
1. गुजरात में लोथल ,रंगपुर ,सुरकोटदा ,मालवड ,रोजदी ,देसलपुर ,धौलावीरा ,भगतराव ,प्रभाषपाटन
2. हरियाणा में राखीगढ़ी , बनावली, मीताथल , कुणाल |
3. पंजाब में रोपड़ (पंजाब), बाड़ा संघोंल (जिला फतेहगढ़ ,पंजाब )|
4. महाराष्ट्र में दायमाबाद धौलपुर , रावण उर्फ़ बड़ागांव , अम्बखेड़ी ,हुलास |
5. जम्मू कश्मीर में मांदा
6. राजस्थान में कालीबंगन तरखनवाला डेरा |
1. शोर्तुघई - यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले हे |
2. मुंदिगाक
भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहर :-
1. गुजरात में लोथल ,रंगपुर ,सुरकोटदा ,मालवड ,रोजदी ,देसलपुर ,धौलावीरा ,भगतराव ,प्रभाषपाटन
2. हरियाणा में राखीगढ़ी , बनावली, मीताथल , कुणाल |
3. पंजाब में रोपड़ (पंजाब), बाड़ा संघोंल (जिला फतेहगढ़ ,पंजाब )|
4. महाराष्ट्र में दायमाबाद धौलपुर , रावण उर्फ़ बड़ागांव , अम्बखेड़ी ,हुलास |
5. जम्मू कश्मीर में मांदा
6. राजस्थान में कालीबंगन तरखनवाला डेरा |
हड़प्पा सभ्यता की खोज की कहानी :-
1. 1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता के बारे में पता लगाया था |
2. 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओ द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी थी
3. एलेक्ज़ेंडर कर्निघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया था |
4. इसी क्रम में 1861 में एलेक्ज़ेंडर कर्निघम के निर्देशन में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (ASI-Archaeological Survey of India ) की स्थापना की गई तथा कर्निघम इसके प्रथम महानिदेशक (Director General ) बनाया गया |
5. 1904 में लार्ड कर्ज़न द्वारा जॉन मार्सल को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग का महानिदेशक बनाया गया |
6. फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा |
7. 1921 में माधो स्वरुप वल्स तथा दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन प्रारम्भ किया | इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया |
8. इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल ने पुरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की |
9. यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिये इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया |
10. प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता हैं |
11. प्रथम बार कांसे के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता हैं |
हड़प्पा सभ्यता की बस्तियाँ :-
5. 1904 में लार्ड कर्ज़न द्वारा जॉन मार्सल को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग का महानिदेशक बनाया गया |
6. फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा |
7. 1921 में माधो स्वरुप वल्स तथा दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन प्रारम्भ किया | इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया |
8. इन्हीं खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल ने पुरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की |
9. यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिये इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया |
10. प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता हैं |
11. प्रथम बार कांसे के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता हैं |
हड़प्पा सभ्यता की बस्तियाँ :-
हड़प्पा सभ्यता की बस्तियाँ दो भागों में विभाजित थी :-
1. दुर्ग :-ये कच्ची ईंटो की चबूतरे पर बनी होती थी | दुर्ग को दीवारों से घेरा गया था | दुर्ग पर बनी संरचनाओं का प्रयोग संभवत: विशिष्ट सार्वजानिक प्रयोग के लिए किया जाता था |
2. निचला शहर :-निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता हैं | निचला शहर भी दीवारों से घेरा गया था | इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे |
हड़प्पा सभ्यता की सड़को और गलियों की विशेषता :-
1. हड़प्पा सभ्यता में सड़को को तथा गलियों को लगभग एक ग्रिड पद्धति पर बनाया गया था |1. दुर्ग :-ये कच्ची ईंटो की चबूतरे पर बनी होती थी | दुर्ग को दीवारों से घेरा गया था | दुर्ग पर बनी संरचनाओं का प्रयोग संभवत: विशिष्ट सार्वजानिक प्रयोग के लिए किया जाता था |
2. निचला शहर :-निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता हैं | निचला शहर भी दीवारों से घेरा गया था | इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे |
हड़प्पा सभ्यता की सड़को और गलियों की विशेषता :-
2. ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं |
3. जल निकास प्रणाली अनूठी थी घरो के गंदे पानी की नालियों को गली की नालियों से जोड़ा गया था |
4. सड़को के साथ-साथ नालियों को बनाया गया था |
5. सड़को और गलियों के अगल-बगल आवासों को बबनाया गया था |
हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के प्रमुख स्रोत :-
1. नहरें 2. कुएँ 3. जलाशय
विशाल स्नानगार की विशेषताएँ :- एक आयताकार जलाशय हैं जो चारो और से एक गलियारे से घिरा हुआ हैं | जलाशय के तल तक जाने के लिए सीढ़िया बनी हैं |
धौलावीरा में मिला जलाशय
हड़प्पा सभ्यता में कृषि प्रौद्योगिकी :-
1. अनाज के दानो से कृषि के संकेत मिलते हैं पर वास्तविक कृषि विधियों के विषय में स्पष्ट जानकारी मिलना कठिन हैं |
2. मुहारो पर किये गए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियों से पता चलता हैं की वहां के लोगो को वृषभ के बारे में जानकारी थी | इससे पता चलता हैं कि खेतो को जोतने के लिए बैलों का प्रयोग किया था |
4. इसके साथ ही पुरातत्वविदों को कालीबंगा ,राजस्थान नामक स्थान से जुटे हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं
5. खेतो में हल रेखाओं के दो समूह मिले हैं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटते हैं इससे पता चलता हैं कि एक साथ दो अलग अलग फसलों को उगाया जाता था |
6. फसलों की कटाई के लिए धातु और पत्थरो के औज़ारो का प्रयोग करते थे |
7. भोजन तैयार करने की प्रक्रिया में अनाज पीसने के यंत्र तथा उन्हें आपस में मिलाने के लिए तथा पकाने के लिए बर्तनो की आवयश्कता थी |
8. इस सभी को पत्थर ,मिटटी तथा धातु से बनाया जाता था |
अवतल चक्कियां :- 1. अवतल चक्कियां बड़ी मात्रा में पाई गई हैं ऐसा लगता हैं की इनका प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता था |
2. साधारणता: ये कठोर ,कंकरीले और अग्रिज (बलुआ ) पत्थर से बनाई जाती थी |
3. इन चक्कियों का तल उत्तल हैं ,निश्चित ही इन्हे जमीन में या मिटटी में जमा कर रखा जाता था जिससे इन्हे हिलने से रोका जा सके |
4. मुख्यता दो प्रकार की चक्किया पाई गई हैं :-
1. एक वे हैं जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था,जिससे निचला पत्थर खोखला हो जाता था |
2. दूसरा जिनसे केवल सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों को कूटने के लिए किया जाता था | इस प्रकार इसे सालन पत्थर नाम दिया गया हैं |
अवतल चक्की
मोहनजोदड़ो :- एक नियोजित शहरी केंद्र
हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केन्द्रो का विकास था | ऐसा ही एक केंद्र मोहनजोदड़ो था |
मोहनजोदड़ो को सिंध का बाग़ भी कहा जाता हैं |
हालाँकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल हैं। ,लेकिन सबसे पहला खोजा गया स्थल हड़प्पा ही हैं |
मोहनजोदड़ो की बस्ती ( दुर्ग और निचला शहर ) :-
यहाँ की बस्तियों को दो भागों में विभाजित किया गया था :-
दुर्ग :-
1. दुर्ग छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया था |
2. यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटो के चबूतरों पर बनी थी |
3. दुर्ग को दीवार से घेरा गया था | जिससे इसे निचले शहर से अलग किया जाता था |
निचला शहर :-
1. निचले शहर को कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया था |
2. निचले शहर को भी दीवार से घेरा गया था |
3. इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे |
नोट:-अनुमान लगया जाता हैं कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा,तो मात्र आधारों को बनाने के लिए ही चालिस लाख श्रम-दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी |
धौलावीरा में मिला जलाशय
हड़प्पा सभ्यता में कृषि प्रौद्योगिकी :-
1. अनाज के दानो से कृषि के संकेत मिलते हैं पर वास्तविक कृषि विधियों के विषय में स्पष्ट जानकारी मिलना कठिन हैं |
2. मुहारो पर किये गए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियों से पता चलता हैं की वहां के लोगो को वृषभ के बारे में जानकारी थी | इससे पता चलता हैं कि खेतो को जोतने के लिए बैलों का प्रयोग किया था |
पकी मिट्टी से बना वृषभ
3. साथ ही चोलिस्तान (पाकिस्तान) के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं |4. इसके साथ ही पुरातत्वविदों को कालीबंगा ,राजस्थान नामक स्थान से जुटे हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं
5. खेतो में हल रेखाओं के दो समूह मिले हैं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटते हैं इससे पता चलता हैं कि एक साथ दो अलग अलग फसलों को उगाया जाता था |
6. फसलों की कटाई के लिए धातु और पत्थरो के औज़ारो का प्रयोग करते थे |
7. भोजन तैयार करने की प्रक्रिया में अनाज पीसने के यंत्र तथा उन्हें आपस में मिलाने के लिए तथा पकाने के लिए बर्तनो की आवयश्कता थी |
8. इस सभी को पत्थर ,मिटटी तथा धातु से बनाया जाता था |
2. साधारणता: ये कठोर ,कंकरीले और अग्रिज (बलुआ ) पत्थर से बनाई जाती थी |
3. इन चक्कियों का तल उत्तल हैं ,निश्चित ही इन्हे जमीन में या मिटटी में जमा कर रखा जाता था जिससे इन्हे हिलने से रोका जा सके |
4. मुख्यता दो प्रकार की चक्किया पाई गई हैं :-
1. एक वे हैं जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था,जिससे निचला पत्थर खोखला हो जाता था |
2. दूसरा जिनसे केवल सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों को कूटने के लिए किया जाता था | इस प्रकार इसे सालन पत्थर नाम दिया गया हैं |
अवतल चक्की
मोहनजोदड़ो :- एक नियोजित शहरी केंद्र
हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केन्द्रो का विकास था | ऐसा ही एक केंद्र मोहनजोदड़ो था |
मोहनजोदड़ो को सिंध का बाग़ भी कहा जाता हैं |
हालाँकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल हैं। ,लेकिन सबसे पहला खोजा गया स्थल हड़प्पा ही हैं |
मोहनजोदड़ो की बस्ती ( दुर्ग और निचला शहर ) :-
यहाँ की बस्तियों को दो भागों में विभाजित किया गया था :-
1. दुर्ग छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया था |
2. यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटो के चबूतरों पर बनी थी |
3. दुर्ग को दीवार से घेरा गया था | जिससे इसे निचले शहर से अलग किया जाता था |
निचला शहर :-
1. निचले शहर को कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया था |
2. निचले शहर को भी दीवार से घेरा गया था |
3. इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे |
नोट:-अनुमान लगया जाता हैं कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा,तो मात्र आधारों को बनाने के लिए ही चालिस लाख श्रम-दिवसों की आवश्यकता पड़ी होगी |
- एक बार चबूतरों के यथास्थान बनने के बाद शहर का सारा भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था |
- इससे ऐसा लगता हैं कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन किया होगा |
- नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटे शामिल हैं जो भले ही धूप में सुखाकर अथवा भट्टी में पकाकर बनाई गई होगी ,एक निश्चित अनुपात में होती थी |
- जहाँ लम्बाई और चौड़ाई ,ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी व दोगुनी होती थी |
- इस प्रकार की ईंटे सभी हड़प्पा बस्तियों में पाई गई थी |
लोथल दुर्ग से घिरा तो नहीं थी पर कुछ ऊँचाई पर बनाया गया था |
नियोजित जल निकास प्रणाली के लिए नालों का निर्माण :-
हड़प्पा नगरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी |
1. सड़को तथा गलियों को लगभग एक ग्रिड पद्धति में बनाया गया था |
2. ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थी |
3. ऐसा लगता हैं कि पहले नालियो के साथ गलियों को बनाया गया था |
4. फिर उनके अलग अलग भवनों का निर्माण किया गया था |
5. यदि घरो के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था |
अब तक खोजी गई प्राचीनतम जल निकास प्रणाली :-
नालियों के विषय में मैंके लिखते हैं - "निश्चित रूप से यह अब तक की खोजी गई महत्वपूर्ण प्राचीनतम प्रणाली हैं "
1. हर आवास गली को नालियों से जोड़ा गया था |
2. मुख्य नाले गरे में जमाई गई ईंटो से बने थे और इन्हे ऐसी ईंटो से ढाका गया था जिन्हे सफाई के लिए हटाया जा सके |
3. कुछ स्थनों पर ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था |
4. घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खली होती थी जिसमे ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में बह जाता था |
5. बहुत लम्बे नालो के लिए कुछ अंतरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थी |
6. जल निकास प्रणाली केवल बड़े शहरो तक ही सीमित नहीं था बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी मिली हैं |
जैसे :-लोथल
2. मुख्य नाले गरे में जमाई गई ईंटो से बने थे और इन्हे ऐसी ईंटो से ढाका गया था जिन्हे सफाई के लिए हटाया जा सके |
3. कुछ स्थनों पर ढकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था |
4. घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खली होती थी जिसमे ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गन्दा पानी गली की नालियों में बह जाता था |
5. बहुत लम्बे नालो के लिए कुछ अंतरालों पर सफाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थी |
6. जल निकास प्रणाली केवल बड़े शहरो तक ही सीमित नहीं था बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी मिली हैं |
जैसे :-लोथल
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