Class 10 science Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes in hindi  Chapter = 3   धातु एवं अधातु  वर्तमान में  118 तत्व  ज्ञात हैं । इनमें  90 से अधिक धातुऐं  ,  22 अधातुऐं और कुछ उपधातु  हैं ।  धातु :-  पदार्थ जो कठोर , चमकीले , आघातवर्ध्य , तन्य , ध्वानिक और ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक होते हैं , धातु कहलाते हैं ।  जैसे :-  सोडियम ( Na ) , पोटाशियम ( K ) , मैग्नीशियम ( Mg ) , लोहा ( Fc ) , एलूमिनियम ( AI ) , कैल्शियम ( Ca ) , बेरियम ( Ba ) धातुऐं हैं ।  धातुओं के उपयोग :-   धातुओं का उपयोग इमारत , पुल , रेल पटरी को बनाने में , हवाईजहाज , समुद्री जहाज , गाड़ियों के निर्माण में , घर में उपयोग होने वाले बर्तन , आभूषण , मशीन के पुर्जे आदि के निर्माण में किया जाता है ।  अधातु :- जो पदार्थ नरम , मलिन , भंगुर , ऊष्मा तथा विद्युत के कुचालक होते हैं , एवं जो ध्वानिक नहीं होते हैं अधातु कहलाते हैं ।  जैसे :-  ऑक्सजीन ( O ) , हाइड्रोजन ( H ) , नाइट्रोजन ( N ) , सल्फर ( S ) , फास्फोरस ( P ) , फ्लूओरीन...
                                                                7 . संघवाद 
                                                   संघवाद  परिचय 
संघवाद :- संघवाद एक संस्थागत प्रणाली है जिसमे एक प्रांतीय स्तर की सरकारे और दूसरी केंद्रीय स्तर की सरकार एक साथ एक ही देश में अपने अपने अधिकारों के अनुरूप शासन करती है | सरकारों की ऐसी व्यवस्था  को संघवाद कहते है | 
भारत में संघीय ढांचा :-भारतीय संघात्मक सरकार में 28 राज्य 9 केन्द्रशासित प्रदेश इकाइयां है जो एक साथ मिलकर भारत में संघीय शासन की स्थापना करती है | केंद्रीय शासन के तौर पर दिल्ली को राष्टीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है |
विश्व में संघीय राज्य :-विश्व में बहुत ऐसे राज्य है जहां संघीय शासन प्रणाली है जैसे -अमेरिका भी संघीय राज्य है लेकिन वह जर्मनी और भारत से भिन्न है | वेस्टइंडीज ,नाइजीरिया आदि में संघीय राज्य है | 
भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण :-
भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण निम्नलिखित है |
(1) संविधान की सर्वोच्यता :-भारत में कोई भी शक्ति संविधान से ऊपर नहीं है | 
(2 ) स्वतंत्र सर्वोच्य न्यायालय :- भारत में स्वतंत्र सर्वोच्य न्यायालय है जो संघीय ढांचे में केन्द्र और राज्य के बीच विवादों का निपटरा करता है |
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
(4) दोहरी शासन प्रणाली :-भारत में दोहरी शासन प्रणाली है जिसमे एक सशक्त केंद्रीय सरकार और दूसरा प्रांतीय सरकारे राज्यों में शासन करती है | 
(5) इकहरी नागरिकता :-भारत में सभी नागरिको को इकहरी नागरिकता प्राप्त है | 
(6) संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान 
(7) एकीकृत न्यायपालिका 
(8) आपातकाल में एकात्मक शासन 
भारत राज्य में संघवाद की आवश्यकता :
1. भारत एक विशाल राज्य है जिस पर  शासन करने के लिए शक्तियों को प्रांतीय और केंद्रीय शक्तियों में बाँटना जरुरी है | 
2. भारतीय शासन में क्षेत्रीय और भाषाई विविधताएं अधिक है इन विविधताओं को मान्यता देने की आवश्यकता थी | इससे सभी को समान अधिकार और सत्ता में भागीदारी  सुनिश्चित किया जा सके | 
3. भारतीय राज्य की कल्पना एक लोकतान्त्रिक राज्य की है जिसमे सभी की सहभागिता आवश्यक है | 
लोकतान्त्रिक राज्य संघीय व्यस्था को मान्यता देता है | 
केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का विभाजन :-
संघीय व्यवस्था में शक्तियों का विभाजन आवश्यक है | भारत के संविधान में दो तरह के सरकारों की बात की गई है | 
(i) एक सम्पूर्ण राष्ट के लिए जिसे संघीय सरकार या केंद्र सरकार कहते है | 
(ii ) दूसरी प्रत्येक प्रांतीय इकाई या राज्य के लिए जिसे राज्य सरकार कहते है दोनों ही संवैधानिक सरकारे है और इसके स्पष्ट कार्य क्षेत्र है | शक्तियों के विभाजन को लेकर यदि दोनों के बीच विवाद हो जाये तो इसका निर्णय न्यायपालिका संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार करेगी | संविधान इस बात की स्पष्ट व्यवस्था करता है कि कौन कौन सी शक्तियॉ केंद्र के पास होगी और कौन कौन सी राज्यो के पास होगी |
संविधान ने आर्थिक और वित्तीय शक्तियाँ केंद्र सरकार के हाथ में सौपी है  | 
राज्यों के पास उत्तरदायित्व बहुत अधिक है और आय के साधन कम है | 
संघीय व्यवस्था में न्यायालय की भूमिका 
केंद्र और राज्यों के मध्य किसी टकराव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था होती है जो संघर्षो का समाधान करती है | न्यायपालिका के पास केंद्र सरकार और राज्यों सरकारों के बीच शक्ति के बँटवारे के सम्बन्ध में उठने वाले क़ानूनी विवादों को हल करने का अधिकार होता है | 
भारतीय संघ को लेकर संविधान  निर्माताओं की मान्यता :-
                               अथवा
समस्याऍ  जिसके कारण संविधान निर्माता एक सशक्त केंद्रीय सरकार चाहते थे :
1. संविधान निर्माताओं की मान्यता थी कि वे  संघीय संविधान चाहते थे जो भारतीय विविधताओं को समेट सके 
2. वे एक शक्तिशाली केंद्रीय सरकार की स्थापना भी करना चाहते थे जो विघटनकारी प्रवृतियों पर अंकुश रख सके और सामाजिक और 
राजनितिक परिवर्तन ला सके |
3. देश की एकता बनाये रखने के साथ साथ संविधान निर्मता यह भी चाहते थे कि सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान एक शक्तिशाली केंद्रीय सरकार करे और ऐसा करने में उसे राज्यों का सहयोग भी प्राप्त हो | 
4. गरीबी ,निरक्षरता और आर्थिक असमानता राष्ट्रीय एकता और विकास  आदि कुछ ऐसी समस्याएँ थी जिनके समाधान के लिए नियोजन (planning) और समन्वय (coordination)  बहुत जरुरी था जिसके लिए एक सशक्त केंद्रीय सरकार की आवश्यकता थी | 
संवैधानिक प्रावधान जो सशक्त केंद्रीय सरकार की स्थापना करते है :-
 1. किसी राज्य के अस्तित्व और भौगोलिक सीमाओं के स्थायित्व पर संसद का नियंत्रण | 
3. केंद्र सरकार के पास अत्यंत प्रभावी वित्तीय शक्तियाँ और उत्तरदायित्व प्राप्त है तथा आय के प्रमुख संसाधनों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है |
4. राज्य के राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त है कि वह राज्य सरकार को हटाने और विधानसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज सकते है |
5. केंद्र सरकार राज्य विधान मंडल द्वारा पारित किसी विधेयक या कानून निर्माण में देरी कर सकता है अथवा यदि चाहे तो ऐसे विधेयकों की परीक्षा कर उन पर निषेध अधिकार (वीटो ) का प्रयोग कर उसे पूरी तरह नकार सकता है |
भारतीय संविधान शरीर से तो संघात्मक है परन्तु आत्मा उसकी एकात्मक है यह  निम्नलिखित  बातों से स्पष्ट की जाती है |
(iii) केंद्र को राज्यों के मुकाबले अधिक अधिकार प्राप्त है |
केंद्र और राज्यों के बीच सम्बंध :
1950  के बाद नए राज्यों की गठन की माँग के अलावा केंद्र और राज्यों के बीच सम्बंध शांतिपूर्ण और समान्य रहे | राज्यों को आशा थी कि वे  केंद्र से प्राप्त वित्तीय अनुदान से वे अपने राज्य में विकास कर सकेंगे |  
1960 के दशक के बाद जब कांग्रेस का वर्चस्व धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और राज्यों में अन्य दलों की सरकारे गठित होने लगी तो उन सरकारों ने केंद्र की कोंग्रेस सरकार की राज्यों के मामलो में बेमतलब हस्तक्षेप का विरोध शुरू कर दिया और अब केंद्र द्वारा राज्यों से तालमेल पहले जैसा  आसान   नहीं रहा और  धीरे-धीरे संघीय व्यवस्था में राज्यों की स्वायत्ता की अवधारणा को लेकर वाद -विवाद छिड़ गया | 
इससे राज्यों का राजनितिक कद बढ़ा ,विविधता का आदर हुआ और एक स्वच्छ और मँजे हुए संघवाद की शुरुआत हुई | राज्यों की स्वायत्ता की माँग बढ़ने लगी | 
भारत में शासन व्यवस्था संघात्मक है परन्तु एकात्मक शासन के साथ-साथ  संघात्मक भी है | ऐसी स्थिति में केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न 
मुद्दों पर विवाद होते रहते है | ये मुद्दे कुछ इस प्रकार है :-
(2) राज्यों के मामलो में केंद्र के हस्तक्षेप को लेकर
(1.) राज्य सरकार की सहमति के बिना जम्मू कश्मीर में "आंतरिक अशांति " के आधार पर 'आपातकाल ' लागू नहीं किया जा सकता है | 
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Good knowledge
ReplyDeleteSuperb notes
ReplyDeleteSuperb Bhaiya ji
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