Class 10 science Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes in hindi  Chapter = 3   धातु एवं अधातु  वर्तमान में  118 तत्व  ज्ञात हैं । इनमें  90 से अधिक धातुऐं  ,  22 अधातुऐं और कुछ उपधातु  हैं ।  धातु :-  पदार्थ जो कठोर , चमकीले , आघातवर्ध्य , तन्य , ध्वानिक और ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक होते हैं , धातु कहलाते हैं ।  जैसे :-  सोडियम ( Na ) , पोटाशियम ( K ) , मैग्नीशियम ( Mg ) , लोहा ( Fc ) , एलूमिनियम ( AI ) , कैल्शियम ( Ca ) , बेरियम ( Ba ) धातुऐं हैं ।  धातुओं के उपयोग :-   धातुओं का उपयोग इमारत , पुल , रेल पटरी को बनाने में , हवाईजहाज , समुद्री जहाज , गाड़ियों के निर्माण में , घर में उपयोग होने वाले बर्तन , आभूषण , मशीन के पुर्जे आदि के निर्माण में किया जाता है ।  अधातु :- जो पदार्थ नरम , मलिन , भंगुर , ऊष्मा तथा विद्युत के कुचालक होते हैं , एवं जो ध्वानिक नहीं होते हैं अधातु कहलाते हैं ।  जैसे :-  ऑक्सजीन ( O ) , हाइड्रोजन ( H ) , नाइट्रोजन ( N ) , सल्फर ( S ) , फास्फोरस ( P ) , फ्लूओरीन...
📚अध्याय - 3 📚
👉समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व 👈
अमेरिका द्वारा 'नई विश्व व्यवस्था ' की शुरुआत :
- 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीतयुद्ध का अंत हो गया तथा अमेरिकी वर्चस्वस्थापना के साथ विश्व राजनीती का स्वरुप एक ध्रुवीय हो गया |
- अगस्त 1990 में इराक ने अपने पड़ोसी देश कुवैत पर कब्जा कर लिया | संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस विवाद के समाधान के लिए अमेरिका को इराक के विरुद्ध सैन्य बल प्रयोग की अनुमति दे दी | संयुक्त राष्ट्र संघ का यह नाटकीय फैसला था ,अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसे नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा दी |
वर्चस्व -
वर्चस्व (हेजेमनी ) शब्द का अर्थ है सभी क्षेत्रों जैसे सैन्य, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मात्र शक्ति केंद्र होना 
अमेरिकी वर्चस्व की शुरुआत 
अमेरिकी वर्चस्व की शुरुआत 1991 में हुई जब एक ताकत के रूप में सोवियत संघ अंतराष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गया | इस स्तिथि में अमेरिकी वर्चस्व सर्वव्यापी मान्य हो गया अन्यथा अमेरिकी वर्चस्व 1945 से ही अंतरास्ट्रीय पटल पर विध्यमान था | 
प्रथम खाड़ी युद्ध/ ओपरेशन डेजर्ट स्ट्रॉम 
- 1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से उस पर कब्जा जमा लिया | सभी देशों द्वारा इराक को समझने की कोशिश की गई की यह गलत है लेकिन इराक नहीं माना तब संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त करने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे दी | संयुक्त राष्ट्र संघ के इस सैन्य अभियान को 'ओपरेशन डेज़र्ट स्ट्रोम ' कहा जाता है |
- U.N का यह फैसला नटिकए फैसला कहलाया क्युकी U.N ने शीतयुद्ध तक इतना बडा फैसला नहीं लिया जॉर्ज बुश ने इसे नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा दी
- एक अमेरिकी जनरल नार्मन श्वार्जकॉव इस सैन्य अभियान के प्रमुख थे और 34 देशों की इस मिलीजुली सेना ने 75 प्रतिशत सैनिक अमेरिका के ही थे हालाँकि इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कहा था की यह ' सौ जंगो की एक जंग ' साबित होगी लेकिन इराकी सेना जल्दी ही हार गयी और उसे कुवैत से हटने पर मजबूर होना पड़ा |
कंप्यूटर युद्ध 
- प्रथम खाड़ी यद्ध के दौरान अमेरिका की सैन्य क्षमता अन्य देशों की तुलना में कही अधिक थी | अमेरिका ने प्रथम खाड़ी युद्ध में स्मार्ट बमों का प्रयोग किया इसके चलते कुछ प्रवेक्षको ने इसे 'कंप्यूटर युद्ध ' की संज्ञा दी |
- इस युद्ध की टेलीविज़न पर बहुत कवरेज हुई इस कारण इसे वीडियो गेम वॉर भी कहा जाता है |
जॉर्ज बुश के बाद कौन राष्ट्रपति बने ?
प्रथम खाड़ी युद्ध के बाद 1992 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए बिल क्लिंटन नए रास्ट्रपति बने | अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन लगातार दो कार्यकालों (जनवरी 1993 से जनवरी 2001 ) तक राष्ट्रपति पद पर रहे | इन्होने अमेरिका को घरेलू रूप से अधिक मजबूत किया और अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा जलवायु परिवर्तन तथा विश्व व्यापार जैसे नरम मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया | 
अमेरिकी दूतावास पर हमला
केन्या (नरोनी ) में बने अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ एवं दारूस्लाम (तंजानिया ) में बने अमेरिकी दूतावास पर भी हमला हुआ | हमले की जिम्मेदारी "अलकायदा " को बताया गया | यह एक आतंकवादी संगठन है | 
11 सितम्बर (9 /11 ) की घटना 
- 11 सितम्बर 2001 को अलकायदा के 19 आतंकियों ने चार व्यावसायिक विमानों को कब्जे में ले लिया | अपहरणकर्ता इन विमानों को अमेरिका की महत्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गए |
- दो विमान न्यूयोर्क स्तिथ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए
- तीसरा विमान पेंटागन ( रक्षा विभाग का मुख्यालय ) की बिल्डिंग से टकराया
- चौथे विमान को अमेरिकी कांग्रेस की मुख्य ईमारत से टकराना था लेकिन वह पेन्सिलवेनिया के खेत में गिर गया गया | इस हमले को 9 /11 कहा जाता है |
9 / 11 की घटना के परिणाम 
इस घटना से पूरा विश्व हिल सा गया | अमेरिकियों के लिए यह दिल दहला देने वाली घटना थी | इस हमले में लगभग 3 हजार व्यक्ति मारे गए | 
ओपरेशन एंडयूरिंग फ्रीडम 
- आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश ने 2001 में 'ऑपरेशन एंडयूरिंग फ्रीडम ' चलाया |
- यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 की घटना का शक था | इस अभियान में मुख्य निशाना अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया गया |
- ऑपरेशन एंडयूरिंग फ्रीडम का यह परिणाम निकला की तालिबान की समाप्ति हो गई और अलकायदा का कमजोर पड़ गया |
9 /11  के बाद अमेरिका द्वारा बनाये गए बंदी :
- अमेरिकी सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ की | अक्सर गिरफ्तारी में लोगो के बारे में उनकी सरकार को जानकारी नहीं दी गई |
- गिरफ्तार लोगों को अलग अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खफिया जेलखानों में रखा गया | क्यूबा के निकट अमेरिकी नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो बे में है,कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया
- इस  रखे गए बंदियों को न तो अन्तराष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमेरिका के कानूनों की | संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई | 
ऑपरेशन इराकी फ्रीडम :
- 19 मार्च 2003 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुमति के बिना ही इस=इराक पर हलमा कर दिया जिसे ऑपरेशन इराकी फ्रीडम कहा | दिखावे के लिए अमेरिका ने कहा की इराक खतरनाक हथियार बना रहा है लेकिन बाद में पता चला की इराक में कोई खतरनाक हथियार नहीं है
- हमले के पीछे उद्देश्य - अमेरिका इराक के तेल भंडार पर कब्जा और इराक में अपनी मनपसंद की सरकार बनाना चाहता था |
- इसके बाद सद्दाम हुसैन का अंत हो गया साथ ही बहुत से आम नागरिक भी मारे गए | पूरा विश्व ने इस बात की आलोचना की थी | इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश थे | ओपरेशन इराकी फ्रीडम को सैन्य और राजनितिक धरातल पर असफल माना गया क्योंकि इसमें 3000 सैनिक ,बड़ी संख्या में इराकी सैनिक तथा 50000 निर्दोष नागरिक मारे गए थे |
अमेरिका इतना ताकतवर क्यों है ? इसके महाशक्ति होने के कारण :
- बढ़ी - चढ़ी सैन्य शक्ति के कारण महाशक्ति
- सैन्य प्रौद्योगिकी
- दुनिया के 12 ताकतवर देशों में से अकेला अमेरिका ही रक्षा बजट पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च करता है
- पेंटागन अपनी रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा सैन्य तकनीक तथा अनुसन्धान पर खर्च करता है
- हथियार आधुनिक है तथा गुणात्मक रूप से दुनिया में सबसे ज्यादा अच्छे है
- दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति
- वीटो पावर भी है
विश्व की अर्थव्यवस्था में अमेरिका का  स्थान 
- विश्व की अर्थव्यवस्था में अमेरिकी भागीदारी 28 प्रतिशत है
- हर क्षेत्र में अमेरिका की कोई न कोई कंपनी अग्रणी तीन कंपनियों में से है
- प्रमुख आर्थिक अंतराष्ट्रीय संगठनों जैसे IMF, विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन पर अमेरिका का दबदबा
- वर्ल्ड वेब वाइड (www ) या इंटरनेट पर अमेरिकी प्रभुत्व एवं MBA की डिग्री |
अमेरिकी वर्चस्व  की राह में तीन सबसे बड़े अवरोध :-
- अमेरिका की संस्थागत बनावट : अमेरिका की संस्थागत बनावट , जिसमे सरकार के तीनों अंगों यथा व्यवस्थापिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे के ऊपर नियंत्रण रखते हुए स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करते है |
- अमेरिकी समाज की उन्मुक्त प्रकृति : अमेरिकी समाज की प्रकृति उन्मुक्त है ,यह अमेरिका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में बड़ी भूमिका निभाती है |
- नाटो : नाटो , इन देशों में बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है ,नाटो में शामिल देश अमेरिका के वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते है | इस संगठन का नाम है 'नाटो ' अर्थात उत्तर अटलांटिक ट्रीटी ओर्गनइजेशन |
अमेरिकी वर्चस्व से बचने के उपाय :-
बैंडवेगन निति - इसका अर्थ है वर्चस्वजनित अवसरों का लाभ उठाते हुए विकास करना | 
भारत , चीन , रूस साथ हो जाये तो अमेरिकी वर्चस्व से बचा जा सकता है | 
कोई देश अपने आप को अमेरिकी नजर से छुपा ले | 
यदि राज्येतर संस्थाएँ NGO ,सामाजिक आंदोलन , मिडिया ,जनता , बुद्धिजीवी , कलाकार , लेखक सभी मिलकर अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिरोध करे| 
भारत अमेरिकी सम्बन्ध 
- शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की निति अपनाने के कारण महत्वपूर्ण हो गए है | भारत अब अमेरिका की विदेश निति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसके प्रमुख लक्षण परिलक्षित हो रहे है |
- अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार |
- अमेरिका में बसे अनिवासी भारतीयों खासकर सिलिकॉन वैली में प्रभाव
- सामरिक महत्व के भारत अमेरिकी असैन्य परमाणु समझौते का सम्पन्न होना
- बराक ओबामा की 2015 की भारत यात्रा के दौरान रक्षा सौदों से सम्बंधित समझौतों का नवीनीकरण किया गया तथा कई क्षेत्रों में भारत को ऋण प्रदान करने की घोषणा की गयी |
- वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आउटसिंग सम्बन्धी निति से भारत व्यापारिक हित प्रभावित होने की संभावना है |
- वर्तमान में विभिन्न वैश्विक मंचों पर अमेरिकी राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच हुई मुलाकातों तथा वार्ताओं को दोनों देशों के मध्य आर्थिक , राजनितिक, सांस्कृतिक तथा सैन्य सम्बन्धो के सुदृणीकरण की दिशा में सकारत्मक सन्दर्भ के रूप में देश जा सकता है |
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